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विद्या राजपूत: बस्तर की वो 'महिला', जिसने खुद से खुद को पैदा किया

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विद्या कहती हैं- मैंने स्ट्रगल किया है, समाज से परिवार से लोहा लिया है, तब जाकर मुझे ये जिंदगी मिली है और बहुत अच्छी जिंदगी मिली है.

डेस्क. थोड़ा सुकून जरूर मिलता कि अब समाज में जेंडर इक्वेलिटी की सिर्फ बात ही नहीं होती, बल्कि कुछ काम भी हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ में इसी साल पुलिस विभाग में आरक्षक की भर्ती प्रक्रिया में 13 ट्रांसजेंडर भी चयनित हुए. उनकी ट्रेनिंग अगले महीने शुरू हो जाएगी. एलजीबीटीक्यू अब खुलकर सामने भी आने लगे हैं. सामुदायिक भवन, मकान, जैसे कुछ शासकीय लाभ भी समाज के लोगों को मिलने लगे हैं, लेकिन अब भी बराबरी के लिए बहुत कुछ होना, करना बाकी है. इसके लिए संघर्ष भी जारी है.

जब मैं कहती हूं कि मैंने खुद से खुद को पैदा किया है तो सुनने वाले आश्चर्य करते हैं. दरअसल मां की कोख से मेरा जन्म भले ही 1 मई 1977 को हुआ, लेकिन मैं खुद के धरती पर होने का अहसास तब ही कर पाई, जब मैंनें उस जिंदगी को जीना शुरू किया, जिसे मैं अपने शरीर में महसूस करती थी. मां की कोख से मैं लड़का पैदा हुआ, जिसका नाम विकास राजपूत था. वो लड़का जो 10 साल की उम्र से ही खुद की उस पहचान से इनकार करने लगा था, जो परिवार और समाज वालों की नजर में उसकी थी.

खटकती थी चाल

बस्तर के कोंडागांव जिले के फरसगांव में मेरे घर और मोहल्ले वालों की नजर में मेरी चाल लोगों को खटकती थी, कई बार टोका तो कई बार चिढ़ाया जाता था. अंदर ही अंदर मैंने खुद को लड़की मान लिया था. कई बार परिवार वालों से बात की, कोई नहीं माना, सोचा जिंदगी खत्म कर लूं, लेकिन..खैर मैंने ठान लिया कि मैं अपना सेक्स चेंज करवाउंगी, आत्मा से लड़की हूं और अब शरीर से भी लड़की ही रहूंगी. लेकिन इसके लिए काफी पैसे लगते. बचपन में ही पिता की मौत के बाद से परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी तो मैंने सोचा पहले पैसा कमा लूं. आगे की पढ़ाई के लिए रायपुर आ गई. यहीं कुछ सालों तक अलग अलग फर्मों में नौकरी की. पैसे इकट्ठा किए.

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बहुत दर्द हुआ

साल 2007 से मैंने सेक्स चेंज की प्रक्रिया शुरू करवाई. 2020 तक अलग अलग चरणों में चार ऑपरेशन हुए. जब मैं उस ऑपरेशन में थी तब मेरे साथ कोई नहीं था. बहुत दर्द महसूस कर रही थी, लेकिन उस दर्द के ऊपर एक खुशी थी कि मैंने अपने शरीर को पाया. अब तक मैं दूसरे के शरीर में सफर कर रही थी, अब जब मैंने अपना चोला बदला है, जो मैंने लड़के का लिबाज उतारकर लड़कियों का लिबाज पहना, जो मुझे बचपन से पसंद था. उस ऑपरेशन के बाद मैं अपने आप से मिली. 2007 में रायपुर में कुछ लड़कों ने मेरी एक्टिविटी पर कमेंट किया, मैंने भी उन्हें जवाब दिया तो उन्होंने मिलकर मेरी पिटाई कर दी. मेरी मां सरोज सिंह को बहुत तकलीफ हुई. मुझे लेकर उनकी चिंता इतनी बढ़ी कि वो मानसिक रोगी हो गईं. 2009 में वो हम सबका साथ छोड़ दुनिया से चली गईं.

समाज और परिवार से लोहा लिया

मैंने स्ट्रगल किया है, समाज से परिवार से लोहा लिया है, तब जाकर मुझे ये जिंदगी मिली है और बहुत अच्छी जिंदगी मिली है. मैं खुद पर गर्व महसूस करती हूं, क्योंकि मैं वो हूं, जो पुरुष और स्त्री दोनों की जिंदगी जी है. शुरू में परिवार वालों ने मेरा साथ कभी नहीं दिया, लेकिन अब मेरी बहन और उसके बच्चे खुलकर मेरे साथ हैं, वो कहते हैं कि हमें तुमपर गर्व है. आज आरक्षण के लिए सबसे ज्यादा जरूरतमंद कोई हैं तो वो ट्रांसजेंडर पर्सन हैं. क्योंकि वो भीख मांगते हैं या अपना शरीर बेचते हैं तब खाना खा पाते हैं. सड़क पर नाच रहे हैं तो उनकी जिंदगी चल रही है. किसी भी जाति या आर्थिक लिहाज से भी किसी वर्ग की बात करें तो उनके साथ कम से कम उनका परिवार तो है, लेकिन हमारे साथ तो कोई भी नहीं होता है.

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मैं क्या कर रही हूं?

मैं ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड, छत्तीसगढ़ शासन की समन्वयक हूं. मैं 2009 से एक सामुदायिक आधारित संगठन "मितवा समिति" चला रही हूं. मैं शासकीय और गैर शासकीय संस्थाओं के लिए आमंत्रित प्रशिक्षक के रूप में भी काम कर रही हूं. मुझे एचआईवी / एड्स पर आउट-रिच वर्किंग और परामर्श सेवाओं का 10 वर्ष का अनुभव है. मैं ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित कार्यक्रम के लिए NACO, HIV / AIDS के साथ संबद्ध हूं.
मैं नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल डिफेंस, मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट, भारत सरकार के ड्रग एब्यूज प्रिवेंशन प्रोग्राम में मास्टर ट्रेनर हूं. मैं लीड इंडिया संगठन के साथी के रूप में ट्रेनिंग कर रही हूं, जो पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों के लिए काम कर रहा है. मुझे सामाजिक कार्य क्षेत्र के लिए कई राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार मिले हैं, जैसे कि अलायंस इंडिया से राष्ट्रीय नेतृत्व पुरस्कार 2018, शाइनिंग स्टार्स, अनाम प्रेम, मुंबई महाराष्ट्र द्वारा पुरस्कार 2017 आदि. लेकिन इन सबके साथ मैं लगातार अपने समुदाय को उनका अधिकार, स्वास्थ्य सुविधाएं दिलाने के लिए हर स्तर पर प्रयास कर रही हूं.

(Disclaimer: जैसा कि Bastar Junction से विद्या राजपूत ने एक लिखित साक्षात्कार में बताया)

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