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सिलगेर गोलीकांड: 28 दिनों का आंदोलन, 82 गांवों की भीड़ और 4 मौतों के बाद आदिवासियों काे क्या मिला?

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छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित सिलगेर में सुरक्षा बलों के खुले नए कैम्प के विरोध में आदिवासियों का लंबा आंदोलन चला, जिसमें 4 लोगों की मौत और दर्जनों घायल हुए.

सुकमा. छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के सुकमा जिले का एक गांव सिलगेर पिछले 1 महीने से चर्चा में है. घोर नक्सल प्रभावित माने जाने वाले इस इलाके में सुरक्षा बलों का नया कैम्प 12 मई 2021 को खोला गया, जिसके खिलाफ 13 मई से स्थानीय आदिवासियों ने मोर्चा खोल दिया. बीजापुर और सुकमा जिले के सीमावर्ती गांव सिलगेर में बने सुरक्षा बलों के कैम्प को हटाने की मांग को लेकर किसान आदिवासियों ने आंदोलन शुरू किया. आस-पास के 82 गांवों के हजारों ग्रामीणों द्वारा लगातार किया जा रहा, ये आंदोलन 9 जून को समाप्त हो गया. लेकिन इन 28 दिनों में 4 आदिवासियों की मौत, उनकी मांग, पुलिस, प्रशासन और सरकार के बीच मंथन, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का मामले में दखल, प्रतिनिधियों से मुलाकात, चर्चा भी हुई. इन सबसे आंदोलनरत आदिवासियों को क्या मिला, उसके बारे में हम जानेंगे. लेकिन उससे पहले जान लेते हैं कि सिलगेर के इस आंदोलन की देशभर में चर्चा क्यों है?

दरअसल 13 मई से सिलगेर में शुरू हुए आंदोलन के पीछे पुलिस नक्सलियों की भूमिका बताती रही और आंदोलन को रोकने की कोशिश शुरू कर दी गई. इसी बीच 17 मई को पुलिस और आंदोलनकारी ग्रामीणों के बीच हिंसक झड़प हुई. इस दौरान पुलिस की ओर से गोलीबारी की गई. गोली लगने से 3 लोगों कवासी वागा, उइका पांडु, उरसा भीमा की मौके पर ही मौत हो गई. जबकि गोलीबारी के बाद मचे भगदड़ में एक गर्भवति महिला पुनेम सोमली घायल हो गई, जिसकी मौत 23 मई को हुई. 17 मई की घटना के बाद आंदोलनरत आदिवासियों की संख्या बढ़ती ही गई.

विरोध क्यों? पुलिस और ग्रामीणों की दलील

सिलगेर में सुरक्षा बलों के नए कैम्प के विरोध के पीछे पुलिस शुरू से ही नक्सलियों की भूमिका बताती रही है. 17 मई की घटना को लेकर भी पुलिस की दलील थी कि ग्रामीणों की आड़ लेकर नक्सलियों ने कैम्प पर हमला किया, पहले उनकी तरफ से गोली चलाई गई. इसके बाद जवाबी कार्रवाई पुलिस ने की. जिन 3 युवाओं की मौके पर मौत हुई, पुलिस ने उन्हें नक्सल संगठन से जुड़ा बताया. बस्तर के आईजी पुलिस सुंदरराज पी. ने कहा- 'पुलिस कैंप के कारण नक्सलियों का अस्तित्व ख़तरे में पड़ रहा है. इसलिए वो गांव वालों पर दबाव डालकर कैंप का विरोध करने के लिए बाध्य कर रहे हैं. विरोध प्रदर्शन के दौरान मारे गए 3 पुरुष भी नक्सल संगठन से जुड़े थे'. जबकि ग्रामीणों का कहना था कि बगैर ग्रामसभा की अनुमति लिए ही उनकी जमीन पर नया कैम्प बना दिया गया है. ग्रामीणों ने मारे गए लोगों के नक्सल संगठन से जुड़े होने की पुलिस के दावे को झूठा बताया और आंदोलन के पीछे नक्सल संगठन की भूमिका से भी इनकार किया. एक ग्रामीण सोडी दुला का कहना है सुरक्षा बल के नए कैम्प खुलने से नक्सल उन्मूलन के नाम पर जबरदस्ती उन्हें परेशान किया जाता है. इसलिए वो चाहते हैं कि उनके इलाके में स्कूल, अस्पताल तो खूलें, लेकिन सुरक्षा बलों का कैम्प नहीं.

समाजसेवियों का दौरा और दखल

गोलीबारी की घटना के दूसरे दिन बस्तर में रह रही जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता, वकील डॉ. बेला भाटिया और उनके अर्थशास्त्री पति ज्यां द्रेज़ सिलगेर जाने के लिए रवाना हुए तो सुरक्षाबलों के जवानों ने उन्हें वहां जाने से रोक दिया. बेला भाटिया ने कहा कि सरकार कुछ छुपाना चाहती है, इसलिए उन्हें जाने से रोका जा रहा है. तीन दिन तक बीजापुर जिला मुख्यालय में रहने के बाद कलेक्टर की अनुमति मिली और वे सिलगेर जा सके. इस दौरान सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी व कुछ राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि मंडलों को भी सिलगेर जाने से रोका गया. इस बीच गोली कांड की जांच के लिए पहुंचे सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने पुलिस के दावों को गलत बताया और कहा- मारे गये सभी लोग और घायल लगभग दो दर्जन लोगों में से कोई भी नक्सल संगठन से जुड़ा नहीं था. आदिवासी महासभा के नेता और पूर्व विधायक मनीष कुंजाम भी प्रदर्शनकारियों के बीच पहुंचे. उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा-मारे गए तीनों आदिवासियों के परिजनों को ज़िला प्रशासन की ओर से 10-10 हज़ार रुपये के तीन लिफ़ाफ़े दिये गये. ग्रामीणों ने सवाल उठाया कि जब मारे गए लोग नक्सली थे तो उनके परिजनों को सहायता राशि क्यों दी जा रही है.

हालांकि इसपर सुकमा कलेक्टर वीनीत नंदनवार ने कहा कि मानवता के दृषिकोण से ये राशि मारे गए लोगों के परिजनों को दी गई. इस बीच प्रशासन और ग्रामीणों के बीच कई दौर की वार्ता हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. सुकमा कलेक्टर ने मारे गए लोगों के मामले में दंडाधिकारी जांच के निर्देश दे दिए, जो कि सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का पालन भी बताया जा रहा है, जिसमें हर मुठभेड़ की दंडाधिकारी जांच की बात कही गई है.

सरकार से वार्ता और ग्रामीणों की मांग

अब तक मामले में चुप्पी साधी राज्य की कांग्रेस सरकार की ओर से पहली सार्वजनिक प्रतिक्रिया 1 जून को आई. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बस्तर सांसद दीपक बैज के नेतृत्व में सरकार का 9 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल बनाया, जिसमें बस्तर संभाग के 8 विधायक शामिल थे. इन्हें ग्रामीणों से चर्चा के लिए 2 जून को सिलगेर जाने कहा गया. भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच सिलगेर से नजदीक बीजापुर के तर्रेम थाना क्षेत्र के पटेलपारा में सरकार के प्रतिनिधिमंडल और आंदोलनरत आदिवासियों के बीच वार्ता हुई. प्रतिनिधिमंडल ने आंदोलन समाप्त करने की बात कही तो आंदोलनकारियों ने अपनी मांगें उनके सामने रख दीं.

सरकार के प्रतिनिधिमंडल से आंदोलन कारियों ने जो मांगें किं उनमें मुख्य रूप से सिलगेर से सुरक्षा बल के नए कैम्प को हटाना, 17 मई को हुए गोली कांड की न्यायिक जांच कराना, कैम्प के लिए ली गई ग्रामीणों की जमीन वापस करना, आंदोलन के दौरान मारे गए लोगों की याद में बनाए गए स्मारक को न तोड़ना और आंदोलन का नेतृत्व कर रहे लोगों को पुलिस द्वारा परेशान न करना था. मौके पर ही बस्तर सांसद दीपक बैज ने आईजी पुलिस सुंदरराज पी. को निर्देश दिया कि स्मारक न तोड़ा जाए और नेतृत्वकर्ताओं को परेशान न किया जाए. इसपर आईजी ने कहा- पुलिस किसी को भी जबरदस्ती परेशान नहीं करती है, यदि कोई अपराधिक गतिविधियों में शामिल न हो तो.जमीन वापसी के मुद्दे पर सुकमा कलेक्टर वीनीत नंदनवार ने कहा कि ग्रामीणों की ओर से जमीन के दस्तावेज प्रस्तुत किए जाएं, इसके बाद आगे की कार्रवाई होगी. मौके पर दीपक बैज ने 'बस्तर जंक्शन' से कहा कि वार्ता सकारात्मक रही और कल तक आंदोलन समाप्त होने की उम्मीद है.

राज्यपाल, सीएम से मुलाकात

हालांकि सरकार के प्रतिनिधिमंडल की 2 जून की वार्ता के बाद भी सिलगेर में आदिवासियों का प्रदशर्न जारी रहा. इस बीच सरकार के प्रवक्ता और वरिष्ठ मंत्री रविन्द्र चौबे के उस बयान ने आंदोलन को और हवा दे दी, जिसमें उन्होंने कहा कि 'सरकार उसी इलाके में सुरक्षा बलों के छह और नए कैम्प बनाएगी'. इस बीच 8 जून को जन संगठनों के समूह 'छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन' के संयोजक आलोक शुक्ला व सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया समेत 4 सदस्यीय दल ने सीएम भूपेश बघेल और 5 सदस्यीय दल ने राज्यपाल अनुसुईया उइके से मुलाकात कर सिलगेर समेत बस्तर के अन्य मुद्दों पर चर्चा की.

सीएम भूपेश बघेल से मुलाकात के बाद सरकार की ओर से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई, जिसमें बताया गया कि सिलगेर में आंदोलनकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से मिलना चाहता है. इसके लिए सीएम बघेल ने हामी भरी है. इसी दिन शाम को सिलगेर में मीडिया से चर्चा में सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने कहा कि कल मीडिया की उपस्थिति में आंदोलन को समाप्त करने का ऐलान कर दिया जाएगा. 9 जून को सिलगेर में फिर से मीडिया का जमावड़ा हुआ. आंदोलन का नेतृत्व कर रहे युवाओं ने सभा स्थल से ऐलान किया कि आंदोलन खत्म नहीं होगा, बल्कि उसका स्वरूप बदलेगा. एक युवा ने कहा कि 'कोरोना संक्रमण के खतरे और खेती किसानी का मौसम होने के कारण आंदोलन का स्वरूप बदला जा रहा है. अब कानूनी प्रक्रिया के तहत सुकमा जिला मुख्यालय या फिर यहीं सीमित संख्या में लोग धरना देंगे. ये धरना तब तक जारी रहेगा, जब तक की सिलगेर से सुरक्षा बल का नया कैम्प न हटा लिया जाए'. इस दिन शाम तक सिलगेर से आंदोलनकारियों की भीड़ हट गई.

वीडियो देखें-

प्रदर्शनकारी आदिवासियों को क्या मिला?

9 जून को बीजापुर के उसूर ब्लॉक, जिसके अंतर्गत सिलगेर के आसपास के गांव आते हैं, को कोरोना कांटेनमेंट जोन घोषित कर किसी भी बाहरी के प्रवेश पर रोक लगा दी गई. सुकमा जिला प्रशासन ने कोविड के बढ़ते मामलों का हवाला देते हुए पूरे जिले में किसी भी सभा, प्रदर्शन या सम्मेलन पर रोक लगा दी. इसके बाद 12 जून को समाजिक कार्यकर्ता और आंदोलनकारी ग्रामीणों के एक दल की सीएम भूपेश बघेल से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए चर्चा हुई. इस चर्चा के बाद सरकार की ओर से 722 शब्दों की लंबी प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई, जिसमें प्रतिनिधियों के नाम छोड़ दिए जाएं तो सिलगेर घटना पर दु:ख व्यक्त करने और मामले में निष्पक्ष जांच के आश्वासन के अलावा सिलगेर से जुड़ी कोई बात नहीं थी. हालांकि विज्ञप्ति में बस्तर में विकासकार्यों का ब्योरा, नए स्वीकृत कार्यों की विस्तृत जानकारी दी गई. प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांगों में शामिल सुरक्षा बल के नए कैम्प को हटाना, मामले की न्यायिक जांच, जमीन वापसी व अन्य का कोई जिक्र सरकारी विज्ञप्ति में नहीं था.

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