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राजनीति

छत्तीसगढ़ में पिछले 2 दिनों से सरकार द्वारा दुर्ग के निजी चंदूलाल चन्द्राकर मेमोरियल मेडिकल कॉलेज को खरीदने (अधिग्रहित करने) पर सियासत गर्म है. दरअसल अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के बाद बवाल मचा है. खबर के मुताबिक निजी मेडिकल कॉलेज को खरीदने के पीछे सरकार की मंशा सीएम भूपेश बघेल के दामाद के परिवार को हित पहुंचाने की कोशिश की ओर संकेत है. ये वही निजी मेडिकल कॉलेज है, जिसमें कमियों और अनियमितताओं के चलते 2017 के बाद से ही एनएमसी (नेशनल मेडिकल काउंसिल) ने एडमिशन पर रोक लगा दी है.

बहरहाल खबर के बाद राज्य से राष्ट्रीय स्तर तक बीजेपी हमलावार हुई और भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर राज्य के पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह और अन्य मंत्रियों ने निशाना साधा.

सियासी बवाल का राज्य सरकार पर असर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि खुद सीएम भूपेश बघेल को मामले में सफाई देनी पड़ी. इसके बाद प्रदेश कांग्रेस के तमाम नेता और खुद को सीएम के करीबी दिखाने वाले लोग निजी मेडिकल कॉलेज को खरीदने के पीछे भूपेश बघेल सरकार की गंगाजल की तरह पवित्र मंशा बताने में जुट गए. बवाल बीते 27 जुलाई को छपी खबर के बाद शुरू हुआ तो अगले ही दिन सुबह सीएम से मिलने चंदूलाल मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले कुछ छात्र और उनके पालक पहुंच गए, उन्होंने सरकार द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक उन्होंने सीएम से अपने भविष्य को लेकर चिंता जताई. सीएम ने आश्वस्त किया कि उन्हें नुकसान नहीं होने देंगे. इसी दिन यानी 28 जुलाई को ही विधानसभा के मानसून सत्र में कॉलेज के अधिग्रहण का प्रस्ताव स्वास्थ्य मंत्री ने पेश कर दिया.

बवाल और सवाल

दरअसल जिस चंदूलाल चन्द्राकर मेमोरियल मेडिकल कॉलेज का अधिग्रहण सरकार कर रही है, उसी संस्था द्वारा भिलाई में चन्दूलाल चन्द्राकर मेमोरियल अस्पताल संचालित किया जाता है. सीएम भूपेश बघेल की बेटी दिव्या बघेल की शादी क्षितिज चंद्राकर से हुई है, जिनके पिता विजय चंद्राकर चंदूलाल चन्द्राकर मेमोरियल हॉस्पिटल के निदेशक मंगल प्रसाद चंद्राकर के छोटे भाई हैं. अब सियासी बवाल इसी बात पर मचा है कि घाटे में चल रहे निजी मेडिकल कॉलेज को सरकार इसलिए ही खरीद रही है, क्योंकि उसे सीएम के दामाद के परिवार द्वारा संचालित किया जा रहा है.

सियासी बवाल भले ही अब मच रहा हो, लेकिन इस पर सवाल उसी दिन से उठने लगे थे जब इसी साल फरवरी में भूपेश बघेल ने निजी मेडिकल कॉलेज को सरकार द्वारा खरीदने का ऐलान किया था. खुद को चन्द्राकर परिवार का सदस्य बताने वाले अमित चन्द्राकर ने इस मामले को लेकर छत्तीसगढ़ की राज्यपाल, स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार से लिखित शिकायत की है. उनकी शिकायत व पूर्व सीएम अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी की एक फेसबुक पोस्ट में लगभग एक जैसे सवाल ही सरकार पर उठाए गए हैं.

अमित जोगी ने लिखा- 'निजी मेडिकल कॉलेज का मूल्यांकन लगभग 20-22 करोड़ का है, लेकिन प्रमोटर्स ने बड़ी चालाकी से नेहरू नगर स्थित कॉर्पोरेट हॉस्पिटल को भी शामिल कर CCMH नाम से DPR बनायीं और बैंक से लगभग 172 करोड़ रुपयों का लोन ले लिया. इस हिसाब से यह लोन मुख्य रूप से नेहरू नगर स्थित अस्पताल के दम पर मिला है न कि कचंदुर स्थित मेडिकल कॉलेज के दम पर. नेहरू नगर स्थित अस्पताल नगर निगम द्वारा दी गयी शासकीय जमीन पर बना है. सरकार जब चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कॉलेज का अधिग्रहण करेगी तो जो बैंक लोन चुकायेगी उससे नेहरू नगर स्थित हॉस्पिटल का लोन भी चुक जाएगा. मतलब जितने शेयरहोल्डर और डायरेक्टर हैं वे सरकारी कृपा से कर्ज मुक्त हो जाएंगे'.

..और सरकार के तर्क

सियासी बवाल मचने के बाद राज्य की कांग्रेस पार्टी, सरकार व उनसे जुड़े लोगों ने एक तरह से निजी कॉलेज को खरीदने के फायदे गिनाने शुरू कर दिए, तर्कों की बाढ़ लग गई. सबका औसत तर्क था कि नया मेडिकल कॉलेज बनाने में करीब 500 करोड़ रुपये खर्च होंगे और समय भी लगेगा. जबकि अधिग्रहण करने में इससे कम राशि ही लगेगी. कितनी लगेगी इसकी स्थिति फिलहाल स्पष्ट नहीं है. इसके अलावा हर साल प्रदेश को 150 नए डॉक्टर मिलने का दावा किया गया. इस सौदे को ही आधार कर राज्य की कांग्रेस केन्द्र की मोदी सरकार पर यह कहकर निशाना साध रही है कि 'वो सरकारी संस्थाओं का निजीकरण कर रहे हैं और कांग्रेस निजी संस्थाओं को सरकारी बना रही है'.

बैंक से सेटलमेंट कैसे होगा?

सूत्रों के मुताबिक निजी कॉलेज की 2020 की बैलेंस शीट में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन बैंक को कचांदूर स्थित मेडिकल कॉलेज व नेहरू नगर स्थित अस्पताल को गिरवी रखकर करीब 72 करोड़ रुपये की देनदारी है. इसके अलावा एक निजी संस्था, जो पूर्व में इसी मेडिकल कॉलेज को खरीदने का सौदा कर रही थी, उसको करीब 37 करोड़ रुपये देने हैं. इसके अलावा डायरेक्टर व परिवार के लोगों के 49 करोड़ रुपये व अन्य के करीब 9 करोड़ रुपयें हैं. एक साल में बैंक का करीब 10 करोड़ रुपये ब्याज बढ़ा है. वर्तमान स्थिति में संस्था पर करीब 175 करोड़ रुपयों का कर्ज है. विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि करीब बैंकों ने सरकार द्वारा अधिग्रहण की घोषणा से करीब 15-20 दिन पहले ही कॉलेज को खरीदने की कोशिश कर रही निजी संस्था से 75 करोड़ रुपयों में सेटेलमेंट कर लिया था. इतनी रकम में बैंक कॉलेज के साथ ही अस्पताल भी देने को तैयार था. क्योंकि दोनों प्रॉपर्टी बैंक के पास गिरवी है. अब सवाल है कि क्या सरकार इतनी ही रकम में कॉलेज के साथ ही अस्पताल का भी अधिग्रहण करेगी?

क्या ये सरकारीकरण को बढ़ावा है?

निजी मेडिकल कॉलेज के अधिग्रहण के संबंध में सीएम भूपेश बघेल ने स्पष्ट तौर पर कहा कि जहां जनता के हित का सवाल होगा तो उनकी सरकार मेडिकल कॉलेज खरीदेगी और नागरनार स्टील प्लांट भी. सीएम ने भी मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा- 'वो सरकारी संस्थाओं का निजीकरण कर रहे हैं और हम निजी संस्थाओं को सरकारी'.

निजी संस्थाओं के सरकारीकरण के बयानों के बीच भूपेश सरकार के उस फैसले का भी जिक्र होना चाहिए, जिसमें ग्रामीण इलाकों में अस्पताल खोलने के एवज में निजी संस्थाओं को सरकार आर्थिक मदद देने का ऐलान किया गया है. सवाल उठे कि क्या सरकार ग्रामीण इलाकों में अच्छे अस्पताल संचालित नहीं कर सकती? क्या पहले से संचालित सरकारी अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में इलाज की उचित व्यवस्था सरकार नहीं कर सकती? कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ज्यादातर निजी अस्पतालों द्वारा मरीजों व उनके परिवार वालों से वसूली गई राशि, व्यवहार क्या कोई भूल सकता है? क्या सरकार द्वारा निजी अस्पताल के संचालन को बढ़ावा देने से क्या वहां इलाज के नाम पर ग्रामीणों से लूट नहीं होगी? निजी संस्थाओं को बढ़ावा देने के सरकार के इस फैसले किसको ज्यादा लाभ होगा?

हालांकि इसी साल 26 जून को सरकार द्वारा किए गए इस ऐलान पर खुद सूबे के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव सवाल उठा चुके हैं. स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि 'इस फैसले से पहले उनकी राय तक नहीं ली गई. इससे ग्रामीण इलाकों में लोगों को लाभ होगा, इसकी उम्मीद कम है'. बहरहाल सरकार तो सरकार है, उसके अपने फैसले और अपने तर्क हैं.

(Disclaimer: लेखक छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये लेख लेखक का फेसबुक पोस्ट है. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह हैं. इसके लिए Bastar Junction किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

 

 

 

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